श्राद्ध / सम्पूर्णानंद मिश्र | हिंदी कविता

श्राद्ध


माता- पिता की
आंखों से निकले आंसू
की भरपाई
कौओं को खिलाए गए
श्राद्ध-पक्ष के निवाले
कत्तई नहीं कर सकते
क्योंकि
कौओं की सीमा है
अपने लोक तक
उस लोक तक
नहीं पहुंचा सकते
कौए
श्राद्ध-पक्ष के भोजन
इसलिए ताज़िंदगी
मात- पिता की इच्छाओं की
सिलाई
स्नेह के धागे से
ऐसी हो कि
जीवनपर्यंत वह न खुले
और उनका
आशीष मिलता रहे
कभी नहीं
पनप पाता है
वह पौधा
जिसे खाद और पानी न मिले
इसलिए
आत्मिक शक्तियों की जड़ों
को निरंतर सींचते रहो
माता-पिता के आशीर्वादात्मक- जल से


सम्पूर्णानंद मिश्र
शिवपुर वाराणसी
7458994874

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